बांग्लादेशी ,रोहिंग्या अपने और बंगाली हिन्दू बाहरी :ई ना चोलबे दीदी

पश्चिम बंगाल चुनाव का शंखनाद हो चुका है और पिछले छः वर्षों में अजेय हो चुकी राजनीतिक पार्टी ने इस चुनाव के लिए अपना...

केरल में संघ का सभ्यता संघर्ष: 4000 शाखाएं-500 स्कूल..लाखों समर्पित स्वयंसेवक

केरल में कई सालों से सभ्यता सँघर्ष के तहत संघ अब्राहमिक रिलीजन इस्लाम-ईसाईयत से लोहा ले रहा है। संघ कार्यकर्ताओं की इसी जुझारू क्षमता...

कैसी ममता ,कौन सी दीदी : गुस्सा और दम्भ है पहचान

अपमानित भाषा , लहज़े और व्यवहार से सम्बोधित करने वाली गुस्सैल स्वभाव की स्वामिनी , मुझ जैसे करोड़ों भारतीयों को किसी भी दृष्टिकोण से न ही ममतामयी दिखती हैं और न ही दीदी की छवि उनमें दिखती है।

मैंने बिना सत्यापन के लगाए थे आरोप , माफ़ी माँगता हूँ :जय राम रमेश ने माँगी अजीत डोभाल के बेटे से माफ़ी

कांग्रेस पार्टी अपनी हताशा और खीज में सार्वजनिक मंच पर बोलने और उचित व्यवहार करने का सलीका भी भूल बैठी है शायद इसलिए कभी...

तृणमूल का काम तमाम :अब बंगाल में भी “जय श्री राम “

आखिरकार वो समय भी आ ही पहुँचा है जिसका पश्चिम बंगाल की अमन पसंद , राष्ट्रप्रेमी और सनातन संस्कारों की जनता के साथ साथ...

बंगाल का काला वामपंथी इतिहास और माँ दुर्गा की प्रतीक्षा: बंगाल चुनाव अंतिम युद्ध

जिस तरह लेनिन के मरने के बाद जनता ने उसकी लाश को चप्पलों से पीटा था उसी प्रकार अब बंगाल की जनता इन वामपंथियों...

भाजपा नेता कपील मिश्ना ने दि दिल्ली के CM केजरीवाल को खुली डीबेट की चुनौती

सीएम केजरीवाल ने विधानसभा के विशेष सत्र में फाडी कृषि बिलो की प्रतिया तो बीजेपी नेता कपील मिश्ना ने दी सीएम को खुली डिबेट की चुनौती।

मित्र और शत्रु को पहचानते थे सरदार वल्लभ भाई पटेल

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल में आकाश-पाताल का अंतर था। यद्यपि दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी परंतु सरदार पटेल वकालत में पं॰ नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। नेहरू प्राय: सोचते रहते थे, सरदार पटेल उसे कर डालते थे। नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी परंतु उनमें किंचित भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे, "मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।" पं॰ नेहरू को गांव की गंदगी, तथा जीवन से चिढ़ थी। पं॰ नेहरू अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे।