माँ

माँ छोटे से दीपकका मद्धिम प्रकाशभर देता आकाश और दिखाई देता है मुझेरात-दिन दोपहर की चौंधया अमावसी कालिमारौशनी हो या अँधेरावह देता है मुझेदृष्टि...

माँ-स्वरूपा लगती है अब भी तुम्हें गाय, भूखा सलीम बेचारा क्या गौ भी न खाये?

मस्जिदों के नीचे क्यूँ मंदिर बनाए? कासिम से पहले क्यूँ राम-कृष्ण आए? क्यूँ जिहाद की राह में रोड़े अटकाए? भग्नाशेषों को रक्खे हो छाती...

कविता: राम भक्त हैं, राम नाम ले राम की गाथा सुनाते हैं, स्वर्ण लंका हो, या बाबरी हो… स्वाहा अधर्म की जलाते हैं…

कलियुग के इस, अधर्मी युग में वैसा अवसर आया था, जब त्याग विनय, भर शौर्य भुजा में भगवा खुलकर छाया था। राम भक्त हैं, राम नाम ले राम की गाथा सुनाते हैं, स्वर्ण लंका हो, या बाबरी हो स्वाहा अधर्म की जलाते हैं।।

मेरा नायक

एक ऐसा नायक जिसके लिए मात्र राष्ट्रहित एवं जनकल्याण ही सदैव सर्वोपरि हो