कांड कोरोना

दुनिया का एक देस निरालाखाए पिए जीव जंतु सारा,उस देस की निराली सरकारसच दबाए बिन लिए डकार। सरकार की एक निकम्मी साथीदिया जलाए बिन...

आओ सफल बनाएं स्वच्छ भारत अभियान

परमाणु शक्ति है देश हमारा, दुनिया में हम प्रथम लोकतंत्र कहलायें  आबादी में हम दूसरा नंबर, बहुतायत में हैं खनिज संपदाऐं  खाद्यान्न की कोई...

स्वच्छ भारत अभियान

आओ सूरज को दिया दिखाएं – स्वामी विवेकानंद पर कविता

त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण, कलयुग में कबीर और विवेकानंद महापुरुष जन्म लेते हैं सदियों में, सदियों तक रहती उनकी सुगंध 19वीं सदी...

स्वामी विवेकानंद पर कविता - आओ सूरज को दिया दिखाएं

प्रेम-दूत

जाओ संदिग्ध गुलाब ! प्रेत से संध्या में झूमते मेरी नेत्रों में तुम्हारा वर्तुल गाढ़ा होता जा रहा है मेरे होंठों से तुम्हारे होंठ धब्बा बन कर कहें और केवल यह देह ओस के अन्धकार में खिलती रहे कह देना उससे जो सुनती है और वाकपटु होकर यह काँटों-भरा आचरण और तीखे शब्द अब उत्कृष्ट हो गए हैं गुलदस्ते को दृढ़ता से पकड़ पेश करने की बजाय जिन अँगुलियों ने कभी उन्हें खून से सींचा था उन्होंने हाथ खींच लेना सीख लिया है जो भी रात के झाड़ सा और चिपकता जाता था उन छितरे आगोशों ने अपने आपको भींच लेना सीख लिया है हवा भी जो सहमी-सहमी सी उनके भीतर से गुज़र न पाती थी अब उस झीनी सी चुभन में छिन्न-भिन्न नहीं हो जाती है और कानों के गुलाब जो हृदय बन अंगों से मज्जा से और आँखों से सुनने लगे हैं और रात्रि और नीरव का शुद्ध श्रवण बन गए हैं वो अपनी ही वाणी को सुन रहे हैं और उस पात्र में ही विलुप्त हो जाना सच्चा है जिसकी अदेखी गिरती पंखुड़ियों के भंवर के नृत्य में घूमता जाता हूँ मैं...

कविता: मैं दिल्ली हूँ

मैं ज़िंदा लाश बन ,कहीं लावारिस पड़ी हूं।कहीं आख़िरी है साँस बची ,कहीं मौत की गोद में पड़ी हूं।मैं दिल्ली हूं। मालिक मेरे छोड़...

मैं दिल्ली हुँ

“मैं एक दीया”

मैं एक दीया” दीया तो दीयाजब भी जलासिर्फ दिया ही दियाअंधेरा सब समेटकरअपने नीचे लियाआखिर मैं माटी का पूतसब कर रोशनअपनी माँ में मिलामैं...