कांग्रेस पार्टी का दंगो का पुराना इतिहास रहा है। जब जब कांग्रेस सत्ता में रही एक नैरेटिव बनने देती गयी और बहुत सूझ बूझ से देश की सभी संस्थाओ में ऐसे लोग भर्ती करती गयी जो बेवक़्त उसके काम आए।
जातिवाद यू तो भारतीय राजनीति में बहुत अहम रहा है। लेकिन इसकी चिंगारी को ज्वालामुखी अपनी जरूररत और राजनीतिक महत्वाकांछा के लिए कांग्रेस समय समय पर इस्तेमाल करती रही है।
शुरुआत उत्तर प्रदेश में नेहरू काल मे ब्राम्हण वाद के पैर पसारने से की गई। उस समय हेमवंती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस का ब्राम्हण चेहरा होते थे।
महाराष्ट्र में मराठा, हरयाणा में जाट, कही कन्नड़ कही तमिल, कही आदिवासी तो कही कोई।
फिर जब कांग्रेस की सत्ता जाती रही तो कई तरह के प्रयोग हुए।
2017 में उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी पंडित बन गए,शीला जी को लाया गया। पर जब कही सफतला नही मिली तो UP के 2 लड़के मिल गए।
ऐसा नही है कि ये मॉडल सब जगह असफल ही रह हो, सोंच समझ के बनाया गया मॉडल है।
हरयाणा में जाट आंदोलन हो या गुजरात मे पटेल आंदोलन। मध्यप्रदेश में दलित आंदोलन। सब इसी परिपाटी का हिस्सा रहे। राजस्थान में गुज्जर आंदोलन केवल बीजेपी की सरकार में उठाया जाता रहा।
गुजरात मे पटेल पूरी तरह नही टूट पा रहे थे तो जिसनेश मवाणी और अल्पेश ठकोर को खड़ा किया गया।
हार्दिक पटेल खूब गली देता गया बीजेपी को और उसका सीधा फायदा कांग्रेस को हुआ, अल्पेश और जिग्नेश ने भी यही किया।
वो तो मोदी जी के आखिरी 3 दिन की मेहनत थी कि बीजेपी गुजरात बचा ले गयी।
आज वही हार्दिक पटेल गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष बना दिये गए, तो सारे तार जोड़े जा सकते है।
कैसे एक व्यक्ति को पैसे और कार्यकर्ता से सपोर्ट करो, खुद को अलग रखो, नैरेटिव सेट करो और सीधा फायदा लो, जब बात न बने को गाहे बगाहे उसको पार्टी में शामिल कर लो।
शत्रुघ्न सिन्हा और नवजोत सिद्धू इसी कड़ी का पोलिटिकल हिस्सा है।
फिर आया मध्य्प्रदेश का चुनाव, यह मामला कठिन था तो आरक्षण को लेके सोशल मीडिया पे compaign चलाया गया, उसके बाद शिवराज जी का स्टेटमेंट्स आया, लोग फिर भी कांग्रेस के पक्ष में आते नही दिखे। अब आयी नोटा की बारी।
जगह जगह कांग्रेस नही चाहिए लेकिन शिवराज भी नही, तो नोटा दबाओ।
परोक्ष रूप से कांग्रेस का फायदा और ज़्यादा वोट मिल के भी बीजेपी इलेक्शन हार गयी।
इसके अलावा छोटी पार्टी बनवा के बाद में गठबंधन कर लेना भी एक रणनीतिक कदम रहा है।
ममता बैनर्जी शरद पवार जैसे बड़े नेता इसका जीता जागता उदाहरण है। कांग्रेस से अलग होके भी केंद्र में मंत्री , जो कि कांग्रेस में रहने पे भी बन जाते, लेकिन विपक्ष के वोट काट लिए।
एक और उदाहरण है उत्तर प्रदेश में भीम सेना और चंद्रशेखर रावण, जिनसे मिलने श्रीमती वाड्रा तुरंत जाती है, उत्तर प्रदेश 2022 की रणनीति पे अगली पोस्ट में लिखूंगा
@anuragfornation
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