अभी भारत में कोरोना महामारी सबसे बड़ी समस्या है जिससे हम सब को एक साथ मिलकर लड़ना है और उससे उबरना है।इस संकट की घडी में भारत की सभी राज्य सरकारें केंद्र सरकार के साथ कंधे से कन्धा मिला कर काम कर रहीं हैं । इसमें देश के सभी डॉक्टरों , स्वास्थ्यकर्मियों तथा प्रशासनिक पदाधिकारियों और पुलिस कर्मियों का बहुत बड़ा योगदान है।बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने पूरे देश में लॉक डाउन कर दिया है।भारत जैसे विशाल देश में यदि इसका प्रसार ज्यादा हो गया तो जान-माल का बड़ा नुक्सान हो सकता है। इसलिए सरकारें अति सतर्कता से कदम उठा रही है। परन्तु इसी बीच कुछ ऐसी घटनाएँ इस देश में घटित हुई हैं जिसने हर किसी को सोचने को मजबूर कर दिया है।सबसे पहले तबलीगी जमात द्वारा भीड़ इकट्ठी कर कोरोना को बढ़ावा देना,सरकार का सहयोग न करना ,इधर–उधर भाग कर पूरे देश में जगह जगह थूक कर कोरोना संक्रमण फैलाना,देश के विभिन्न हिस्सों में डॉक्टरों, नर्सों और पुलिसकर्मियों पर हमला और पथराव करना ,क्वारनटाइन किए गए मरीजों द्वारा नर्सों के सामने नंगे हो जाना,अस्पताल में जहां-तहाँ पेशाब कर देना,दरवाजे के बाहर शौच कर देना,अस्पताल से भाग जाना आदि ।पुलिसकर्मियों और डॉक्टरों पर हमले के सैकड़ों विडियो सोशल मीडिया पर भरे पड़े हैं।इस बीच कई विडियो सोश्ल मीडिया पर वाइरल हुए जिसमें मुस्लिम फलों और सब्जियों के विक्रेता द्वारा फलों और सब्जियों पर थूक लगाते देखा गया जिससे कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा था।तब कुछ जगहों पर लोगों ने सब्जी वालों का आधार कार्ड जांच कर या फिर ठेले पर हिन्दू चिह्न वाले ठेलों से सब्जी-फल खरीदना शुरू कर दिया ।दूसरी हृदय विदारक घटना हुई महाराष्ट्र के पालघर में जहाँ दो संतों को भीड़ द्वारा पुलिस की उपस्थिति में लाठी डंडों से पीट पीट कर हत्या कर दी गई,जब वे अपने गुरु के अंतिम संस्कार में शामिल होने जा रहे थे ।तीसरी घटना है जमशेदपुर की जहाँ एक फल वाले की दुकान से हिन्दू फल दुकान का पोस्टर पुलिस द्वारा हटा दिया गया क्योंकि उसके पोस्टर से मुस्लिमों को आपत्ति थी।पटना में सन्नी गुप्ता की हत्या चाँद मोहम्मद द्वारा सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि वो उनसे सिर्फ लॉक डाउन का पालन करने को कह रहा था।प्रयागराज में एक हिन्दू को सुबह चाय की दुकान पर गोली मार दी क्योंकि उसने तबलीगी जमात के कोरोना फ़ैलाने के बारे में बात की ।हैदराबाद में हिन्दू की दुकान से भगवा झंडे को हटवा दिया गया ।आप सोच रहे होंगे कि मेरे लेख का शीर्षक कुछ और है पर मैं बात कुछ और कर रहा हूँ।दरअसल इन घटनाओं से मुझे बरबस उस तथाकथित “असहिष्णुता” की याद आ गयी जिसकी चर्चा देश भर में 2014 से ही होती रही है।उस समय देश के कई जाने माने साहित्यकारों ने अपने अवार्ड सरकार को लौटा दिए थे। मीडिया में इसकी बहुत चर्चा थी।देश के पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और सेक्युलर ब्रिगेड में सरकार के प्रति अत्यधिक आक्रोश उत्पन्न हो चुका था।कुछ वामपंथी बुद्धिजीवियों ने तो सरकार को चिट्ठी भी लिख डाली थी ।एक पत्रकार ने तो विरोध जताने के लिए अपने टीवी चैनल की स्क्रीन तक काली कर ली थी।आम जन मानस को भी लगने लगा था कि कुछ तो गलत हो रहा है इस देश में ।बॉलीवुड के भी कुछ लोगों को लगने लगा था कि अब ये देश शायद रहने लायक नहीं रहा ।और वो खुल कर सरकार के विरोध में बातें करने लगे थे।सभी को लग रहा था कि मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ‘मुस्लिमों’ के प्रति इस देश में “असहिष्णुता” बढ़ी है और उनके साथ भेदभाव हो रहा है ।
इसका कारण था एक छोटे से कालखंड में अखलाक और पहलू खान की भीड़जनक परिस्थितियों में हत्या! भले ही उसका कारण कुछ और रहा हो।अखलाक गौमांस का तस्कर रहा हो या पहलू खान गायों का तस्कर या फिर पिछले साल झारखण्ड में मारा गया तबरेज़ बाइकचोर, भीड़ द्वारा किसी की हत्या को सही नहीं ठहराया जा सकता।परन्तु अब हम असहिष्णुता के उसी दूसरे पहलू की चर्चा करेंगे जो इस लेख का वास्तविक मुद्दा है।जिस दौरान ये सारी घटनाएँ घटी,उसी कालखंड में डॉ० नारंग क्रिकेट का बॉल लग जाने के कारण अवैध बंगलादेशी मुस्लिम द्वारा मार दिये गए ,अंकित सक्सेना का मुस्लिम लड़की से प्यार करना उसके जीवन का काल बन गया। ,ध्रुव त्यागी अपनी बेटी की आबरू बचाते हुए मारे गए ,चन्दन गुप्ता लखनऊ में तिरंगा यात्रा के दौरान गोली लग जाने से शहीद हो गया।कमलेश तिवारी हिन्दू संगठन के कार्यकर्ता थे जो मुस्लिमों द्वारा लगातार हिन्दू देवी-देवताओं की अश्लील तस्वीरें सोश्ल मीडिया पर पोस्ट करने के जवाब में मोहम्मद साहब पर कुछ बोल दिये थे,जिसके लिए वे अदालती कार्रवाई का सामना कर रहे थे।पर उनकी भी गोली मार कर हत्या कर दी गयी। इन जैसे कई लोगों की हत्याएँ इस दौर में हुई।कई महिलाओं के रेप हुए।हैदराबाद में युवा महिला डॉक्टर को रेप करने के बाद जला कर मार डाला गया।इन सारी घटनाओं में हर जगह अपराधी ‘मुस्लिम समुदाय’ से ही था।आज भी भारत की रेप की 70% घटनाओं में रेपिस्ट उसी समुदाय से होता है। उत्तरप्रदेश के कैराना से हिंदुओं के पलायन की खबरें कई मीडिया चैनल की सुर्खियां बनी। परंतु इन मारे गए हिंदुओं के लिए न तो किसी ने अपने अवार्ड वापस किए, न किसी ने अपने टीवी स्क्रीन काले किए,न किसी पत्रकार ने आवाज उठाई और न तो कोई नेता उनके परिजनों को सांत्वना देने उनके घर गया।बॉलीवुड के भी लोगों को इससे कोई डर नहीं लगा और न उन्होने एक भी शब्द कहा।सारे वामपंथी तथाकथित बुद्धिजीवियों को तो जैसे साँप सूँघ गया।
अब आते हैं भारत के राष्ट्रीय मुद्दों पर जैसे कश्मीर से धारा 370 हटाना,जनसंख्या नियंत्रण बिल ,राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC),नागरिकता संशोधन कानून (CAA),आतंकवाद आदि पर। इन सभी मुद्दों पर मुस्लिम समुदाय सरकार का समर्थन नहीं करता बल्कि उसमें बाधा उत्पन्न करता रहा है। कश्मीर में आतंकवादियों के बचाव के लिए पत्थरबाजी की घटना को आप क्या कहेंगे ? CAA में मुस्लिमों को शामिल करने के लिए शाहीन बाग़ और देश के अन्य जगहों पर उनका विरोध प्रदर्शन,तोड़फोड़, राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान और फ़रवरी में हुए दिल्ली के दंगों को कौन भूल सकता है?इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB)अफसर अंकित शर्मा और कांस्टेबल रतनलाल की हत्या,और उससे पहले उनके कपडे उतार कर उनका धर्म जाँच करना क्या असहिष्णुता नहीं है? क्या ये सारी घटनायें मुस्लिमों का हिंदुओं के प्रति असहिष्णुता का उदाहरण नहीं है? जहाँ कश्मीर में वे पत्थरबाज़ी करके आतंकवादियों को संरक्षित करते हैं वहीं देश के अन्य हिस्सों में गाहे-बगाहे संगठित भीड़ द्वारा अन्य धर्मों के लोगों के लिए परेशानी खड़ी करते हैं। वे CAA और NRC जैसे मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन की आड़ में सरकार के समक्ष चुनौती पेश करने लगते हैं। वे अक्सर अपने धर्म को राष्ट्रहित के मुद्दों से ऊपर रखते हैं। और इस चक्कर में वे अवैध बांग्लादेशियों और रोहिंगयाओं को भारत में बसाने की पैरवी करते हैं और उनके लिए सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई करते हैं।NRC का विरोध तो वही कर सकता है जिसमें राष्ट्रप्रेम की तनिक भी भावना न हो। पर आज तक विभिन्न सरकारें उन्हें वोट बैंक समझ कर उनकी गलतियों और अपराधों पर पर्दा डालती आई हैं ।कुछ ने तो वैसे अपराधियों का महिमामंडन भी किया है जिससे उनका मनोबल इतना बढ़ गया है कि अब वे देश के पुनः टुकड़े करने की बात करने लगे हैं।
आज अगर हिन्दू उनसे दूर हो रहे हैं या उनसे समान नहीं खरीद रहे हैं तो इसके लिए उनकी हिंदुओं के प्रति असहिष्णुता बहुत बड़ा कारण रही है। उन्होंने देश के बँटवारे और भारत की आजादी के बाद न तो भारत को अपना देश समझा और न ही हिंदुओं को अपना साथी,यह एक कड़वा सत्य है। उनका पाकिस्तान प्रेम कई मौकों पर खुल कर दिखाई देता है। जब देश का बँटवारा धर्म के आधार पर हुआ था और पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र बना,तो इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए कि भारत हिंदुओं के लिए बना राष्ट्र था।ये और बात है कि हमारे तत्कालीन भाग्यविधाताओं ने इसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का दर्जा दिया और यहां रुके हुए मुस्लिमों को बसने का अधिकार भी।परंतु न उन्होंने कभी दिल से इस राष्ट्र को अपना माना और न वे हमारे हो सके।
ऐसा नहीं है कि हिंदुओं की असहिष्णुता उनके प्रति हमेशा से रही।हिंदुओं ने तो स्वयं कष्ट सहकर भी उनके सुखों का खयाल रखा।अगर हिन्दू असहिष्णु होते तो हिंदु बहुल देश में हिंदुओं के आराध्य श्रीराम लला को राम मंदिर के लिए 491 वर्षों तक कोर्ट के “सुप्रीम फैसले” का इंतजार न करना पड़ता।ये मुस्लिमों की हिंदुओं के प्रति असहिष्णुता नहीं तो और क्या है कि उन्हें अपने भगवान के जन्मस्थान पर मंदिर बनाने के लिए चंद एकड़ जमीन भी न दे सके!
आर्यावर्त के समय से ही भारत हिंदुओं का स्थान रहा है।ना तो यह मोहम्मद साहब का जन्मस्थान है और न इस्लाम धर्म का। यहाँ जो भी आये वो लूटने के इरादे से ही आये और उन्होंने सबसे अधिक निशाना यहां के प्रसिद्ध मंदिरों को ही बनाया।चाहे सोमनाथ हो या अक्षरधाम, या राम मंदिर या काशी विश्वनाथ या फिर अन्य कोई मंदिर,उनका उद्देश्य यहाँ इस्लामिक राज्य कायम करना ही रहा।अगर हिन्दू सचमुच असहिष्णु होते तो इस देश में 800 वर्षों तक मुस्लिमों का शासन नहीं रह पाता।
दरअसल हिन्दू हमेशा से असहिष्णुता का शिकार रहा है। यहाँ पर जो भी विदेशी आक्रमणकारी आये उन्होंने ने सिर्फ हमें लूटा बल्कि हमारी संस्कृति को भी नष्ट करने की भरसक कोशिश की।उन्होंने हमारे घर की इज्ज़त , हमारी बहन-बेटियों का बीभत्स बलात्कार किया।हिन्दू राजाओं की बेटियों को अपने हरम में अपनी हवस मिटाने के लिए यौनदासियों की तरह बंधक बना कर रखा।उन्होंने बड़े पैमाने पर हमारा धर्म परिवर्तन कर हमारी सांस्कृतिक विरासत को ख़त्म करने की कोशिश की।क्या ये मुस्लिमों की असहिष्णुता का क्रूर उदहारण नहीं है ?आज भारत के मुसलमान ये भूल गए हैं कि उनके भी पूर्वज कभी हिन्दू ही थे ।उनके पूर्वजों का भी धर्म परिवर्तन तलवार की नोक पर कराया गया था।हिन्दुओं को वे “काफ़िर” समझते हैं और अरब के मुसलमानों को अपना ।क्या ये उनकी असहिष्णुता नहीं है?जबकि अरब वाले उनको मुस्लिम ही नहीं मानते।
आज जिसे हिन्दू की असहिष्णुता कहा जा रहा है उसे मैं हिन्दुओं की जागरूकता कहता हूँ।आज हिन्दू यदि उनका आर्थिक बहिष्कार कर रहा है तो उसका बहुत बड़ा कारण उनकी हिन्दुओं के प्रति आज तक चली आ रही असहिष्णुता ही है।उनके पैसे का बहुत बड़ा हिस्सा जब आतंकवाद और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में खर्च हो रहा हो तो उनका आर्थिक बहिष्कार होना लाजिमी है।आज यदि इस कोरोना संकट की घडी में कोई हिन्दू; मुस्लिम ठेले वाले से सब्जी नहीं खरीद रहा है तो ये उसकी मर्जी है।वैसे भी कौन किस दुकान से सामान खरीदेगा ये तो ग्राहक के ऊपर निर्भर करता है। हम सब जब बाजार जाते हैं तो हर चीज को देख-परख कर ही सामान खरीदते हैं।खाने-पीने की वस्तुएँ तो और भी सावधानीपूर्वक खरीदते हैं।अब जब किसी के थूक लगा कर सब्जी-फल बेचने का विडियो वायरल हो गया हो तो लोग सावधानी तो बरतेंगे ही।या सिर्फ गंगा-जमनी तहजीब को जिन्दा रखने के लिए किसी को संक्रमित सब्जी भी खरीद लेनी चाहिए ?भले ही वो खाकर वह कोरोना पीड़ित हो जाए ।और ये गंगा–जमनी तहजीब क्या होती है?जब गंगा भी हमारी और यमुना भी तो फिर ये गंगा-जमनी तहजीब आई कहाँ से ?और इसे निभाने का ठेका हमेशा हिन्दुओं को ही क्यों दे दिया जाता है ?क्यों मुस्लिम कभी इस तहजीब को निभाते नज़र नहीं आते?हम हर शुक्रवार को उनका सड़कों पर नमाज़ पढ़ना सहन कर लेते हैं पर वे एक मंगलवार को हमारा सड़कों पर हनुमान चालीसा पढना सहन न कर सके।क्या ये असहिष्णुता नहीं है?संविधान निर्माता बाबा साहब आम्बेडकर ने कहा था कि “हिन्दू और मुसलमान दो ध्रुव हैं और वे एक साथ कभी नहीं रह सकते ।”
वैसे भी कोई किस दुकान से सामान खरीदेगा ये उसका निजी मामला है।किसी को उसमें दखलंदाजी करने का कोई अधिकार नहीं !कल को कोई ये कहे कि आप फ्लिप्कार्ट से सामान क्यों खरीद रहे हैं अमेजोन से क्यों नहीं तो आप क्या कहेंगे?उसी प्रकार हर विक्रेता को अपने दुकान में अपने धर्मों के प्रतीक चिह्न लगाने का अधिकार है।हिन्दू अपनी दुकान में देवी देवताओं के फोटो लगाता है तो मुस्लिम अपनी दुकान में 786 ,ख्वाजा गरीब नवाज़ या फिर कुरआन की पंक्तियाँ लिखता है।इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।पर आज इसके लिए भी लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है।वो अपने ढाबे का नाम “मुस्लिम ढाबा” रखें तो कोई आपत्ति न करे पर “हिन्दू फल दुकान” नाम रखने पर मुख्यमंत्री तक शिकायत हो जाए ,क्या ये असहिष्णुता नहीं है ?
पालघर में हिन्दू संतों को किडनी चोर बता कर पुलिस स्वयं भीड़ के हवाले कर दे और भीड़ उन संतों को लाठी डंडों से पीट पीट कर हत्या कर दे और पुलिस बेबस मूकदर्शक बनी देखती रहे क्या ये असहिष्णुता नहीं है?दरअसल इस हत्या के पीछे बहुत गहरी साजिश है।उनकी हत्या में इसाई मिशनरियों का हाथ नज़र आ रहा है जो उस इलाके में गरीब आदिवासियों का बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन करा रही है । और जूना अखाड़े के वे दोनों संत उनकी राह के बहुत बड़े काँटे थे जो लोगों को जागरूक कर हिन्दुओं को संगठित कर रहे थे ।पर इनके लिए किसी कुमारों ने अपने स्क्रीन काले नहीं किये।किसी सरदेसाइयों,दत्तों,नकवियों,शेरवानियों,भास्करों,शर्माओं, वाजपेइयों,अंजुमों ने आवाज़ नहीं उठाई।
आज की सारी असहिष्णुता हिन्दुओं की एकजुटता के कारण है। हिन्दुओं ने संगठित होकर मुस्लिमों से भी बड़े वोट बैंक का रूप धारण कर लिया है और अपनी इच्छानुसार सत्ता परिवर्तन करने लगे हैं।न सिर्फ सत्ता परिवर्तन बल्कि मुस्लिम वोटों को बौना भी साबित किया है।वो अपना अच्छा-बुरा समझने लगे हैं।तुष्टिकरण करने वालों को उन्होंने सत्ता से उखाड़ फेंका है और यही विरोधियों की कुंठा का कारण है।उन्होंने देश में बड़े पैमाने पर चल रहे धर्म परिवर्तन के खिलाफ आवाज उठाई है।हर वामपथी प्रोपगंडा की अब पोल खुल रही है।हिन्दू अभी संगठित होना शुरू ही हुआ है तब इनकी खिसियाहट इतनी है। अगर आने वाले वर्षों में हिन्दू और भी संगठित हुआ तो पता नहीं क्या होगा?
नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं ।जरूरी नहीं कि आप इससे सहमत ही हों। -कुमार शिवम्
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