kashmiri pandit

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हम भारतवासियों को अपने पूर्वजों की तरफ से कश्मीरी पंडितों से माफ़ी मांगनी चाहिए।

पिछली सहस्त्राब्दी के अंतिम दो दशकों में पैदा होने वाले मेरे सभी दोस्तों से में एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि आप में से कितने लोगों को उनके माता-पिता, शिक्षकों और गुरुओं ने कश्मीर पंडितों के भयानक नरसंहार के बारे में कभी भी, किसी तरह की जानकारी दी थी या नहीं ?

जहाँ हमारे लाखों कश्मीरी भाई-बहिनों को अपना घर, अपना गर्व, अपनी जन्मभूमि, अपनी संस्कृति को तलवार की नोंक पर छोड़कर जाने के लिए मजबूर किया जा रहा था, तब हमारे माता-पिता और गुरु कहाँ व्यस्त थे। यह बात सुच है की हज़ारों किलोमीटर दूर बैठकर किसी तरह का शारीरिक समर्थन करने में हमारे पूर्वज असमर्थ रहे होंगे लेकिन इस भयावह घटना ने इनके अंतर्मन को क्यों नहीं झकझोरा ? क्यों नहीं हमारे पूर्वजों ने धरना दिए, प्रदर्शन किये कि जब तक कश्मीरी पंडितों की हत्या करने वालों, हमारी बहन-बेटियों का सम्मान नष्ट करने वाले इस्लामिक कट्टरपंथियों को भारत की सरकार सजा नहीं देगी तब तक हम लड़ते रहेंगे।

न हमारे अधिकांश पूर्वजों ने विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं को आर्थिक, सामाजिक, और राजनितिक सरंक्षण दिया, न इन्होंने उनकी यातनाभरी कहानियों को सामाजिक चर्चा का विषय बनाया। उस समय की भारत सरकार भी कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार की मूक दर्शक बन हाथ पर हाथ रखकर बैठी रही। यहाँ तक कि आने वाली गैर कांग्रेसी सरकारों ने भी कोई खास कदम इन कश्मीरी हिन्दुओं को उनका गौरव और अधिकार वापस दिलाने के लिए नहीं उठाए।

जब हम बड़े हो रहे थे, अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, हमारे गुरुओं और शिक्षकों ने भी कभी विस्तृत रूप से हमें भारतीय गणराज्य में हिन्दुओं के साथ हुए इस घोर पाप के बारे में नहीं बताया। न हम धारा ३७० के बारे में कुछ जानते थे और न ही हमने किसी कश्मीरी पंडित की आपबीती कभी सुनी थी। १५ अगस्त पर कोई कार्यक्रम क्यों इस घटना पर कभी नहीं किया गया।

हद तो तब हो जाती है जब आज के सूचना युग में भी हम अपने बच्चों को ३० वर्ष से अधिक समय से अपने गांव, अपने मंदिरों, अपने हज़ारों साल पुराने सांस्कृतिक इतिहास को छोड़कर जाने को मजबूर किये गए कश्मीरी हिंदुओं के बारे में कुछ बता पाने का साहस जुटा पाने में असमर्थ हैं।

क्या हमने अपने हज़ार साल के इतिहास से कोई सबक नहीं लिया है जिसमें करोड़ों हिन्दुओं ने अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। अगर हमें हमारा सदियों पुराना इतिहास हमारे पूर्वज नहीं बता सके तो कम से कम वर्तमान में हमारे धर्म और संस्कृति पर हो रहे आक्रमणों से तो हमें अवगत कराते, जिससे हम अपने जीवन को हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए समर्पित करने के लिए कदम उठाते।

लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है, हम अपनी हज़ारों साल पुराने सांस्कृतिक इतिहास को सहज सकते हैं, अपनी जड़ों की ओर वापस लौट सकते हैं, भारत को एक बार फिर से जगद्गुरु का दर्जा दिला सकते हैं। हमें हर संभावना के लिए खुद को तैयार करना है और इसकी शुरुआत हम एक राष्ट्र के रूप में साथ आकर हमारे कश्मीरी हिन्दुओं से, उनके ऊपर हुए अन्याय के प्रति हमारी ३ दशक की उदासीनता के लिए क्षमा मांगने से करनी चाहिए। मैं स्वयं अपनी ओर से, अपने पूर्वजों की ओर कश्मीरी पंडितों से क्षमा मांगता हूँ और उनके संघर्ष में उनका साथ देने का प्रण करता हूँ। आप सभी भी अपने twitter, फेसबुक, और अन्य सोशल मीडिया माध्यम के द्वारा कश्मीरी हिन्दू भाई और बहिनों से क्षमा मांगे और अपने साथियों को भी प्रेरित करें।

इस लेख को पड़ने वाले हर भाई और बहिन से में यह अनुरोध करूँगा कि समय रहते अपने धर्म की रक्षा हेतु कदम उठायें, हमरी वैदिक सभ्यता का खुद को, अपने परिवार को, और आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान दे। जो धर्मयुद्ध हम सैंकड़ों सालों से लड़ रहे है वो अभी ख़त्म नहीं हुआ है, खुद को तैयार करें और युद्ध के लिए सज्ज हो जाएँ। कृपया अपने दोस्तों और परिवार के साथ यह लेख अवश्य साझा करें।

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